क्लाउड सीडिंग तकनीक क्या है: कृत्रिम वर्षा से प्रदूषण और सूखे से राहत की उम्मीद
मोहित गौतम (दिल्ली) : क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) यानी कृत्रिम वर्षा लाने की वैज्ञानिक तकनीक — यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बादलों के भीतर रासायनिक पदार्थ छोड़कर बारिश कराई जाती है। जब वातावरण में पर्याप्त नमी होती है लेकिन बादल वर्षा नहीं कर पाते, तब यह तकनीक बादलों को सक्रिय बनाकर कृत्रिम रूप से वर्षा उत्पन्न करती है। हाल के वर्षों में, भारत समेत कई देशों ने इसे प्रदूषण नियंत्रण, सूखे से राहत और जल संरक्षण के एक प्रभावी उपाय के रूप में अपनाना शुरू किया है।
क्लाउड सीडिंग की शुरुआत 1946 में अमेरिका में हुई थी, जब वैज्ञानिक विंसेंट शेफ़र और बर्नार्ड वोनिग ने पहली बार सूखी बर्फ (Dry Ice) का उपयोग करके कृत्रिम वर्षा का सफल प्रयोग किया था। उस समय से लेकर आज तक यह तकनीक विकसित होती गई और अब इसमें अधिक सटीक उपकरण, विशेष विमान, और कंप्यूटर आधारित मौसम निगरानी प्रणाली का उपयोग किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह होता है कि जब वातावरण में मौजूद बादल पर्याप्त घने हों और उनमें जलवाष्प की मात्रा मौजूद हो, तब उन्हें वर्षा में परिवर्तित किया जा सके।
इस प्रक्रिया में सामान्यतः सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide), सोडियम क्लोराइड (NaCl) और सूखी बर्फ जैसे रासायनिक यौगिकों का इस्तेमाल किया जाता है। ये यौगिक बादलों में जलकणों के चारों ओर जमकर "संघनन केंद्र" (Condensation Nuclei) बनाते हैं। जब बड़ी संख्या में ऐसे केंद्र तैयार हो जाते हैं, तो बादलों में जलकण भारी हो जाते हैं और अंततः वर्षा के रूप में नीचे गिरते हैं। यह पूरी प्रक्रिया एक विशेष विमान या रॉकेट के माध्यम से की जाती है, जो रसायनों को हवा में फैलाते हैं।
आज के समय में कई देश क्लाउड सीडिंग तकनीक का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, चीन ने 2008 बीजिंग ओलंपिक के दौरान बारिश नियंत्रित करने के लिए इसका उपयोग किया था। संयुक्त अरब अमीरात (UAE) रेगिस्तानी इलाकों में कृत्रिम वर्षा द्वारा भूजल स्तर बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, और इज़राइल में भी इसका प्रयोग फसलों की सिंचाई और सूखा नियंत्रण के लिए किया जाता है। भारत में इस तकनीक को पहले महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में सीमित रूप से आजमाया गया है, जबकि अब दिल्ली जैसे महानगरों में इसे प्रदूषण नियंत्रण के लिए उपयोग में लाया जा रहा है।
दिल्ली में हाल ही में हुए क्लाउड सीडिंग ट्रायल ने इस तकनीक को फिर सुर्खियों में ला दिया है। शहर में वायु गुणवत्ता के खतरनाक स्तर तक पहुँचने के बाद सरकार ने कृत्रिम वर्षा को एक वैकल्पिक समाधान के रूप में देखा। विचार यह है कि बारिश होने से वायु में मौजूद सूक्ष्म धूलकण, PM2.5 और PM10 जैसे प्रदूषक नीचे गिर जाएंगे और हवा अस्थायी रूप से साफ हो जाएगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि यह प्रयोग सफल होता है, तो भारत में यह प्रदूषण नियंत्रण का एक नया अध्याय खोल सकता है।
हालाँकि, क्लाउड सीडिंग के कई फायदे हैं, लेकिन कुछ चुनौतियाँ भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती मौसम पर निर्भरता है — अगर बादल नहीं हैं या हवा में पर्याप्त नमी नहीं है, तो यह तकनीक विफल हो जाती है। इसके अलावा, वैज्ञानिकों में अभी भी इस बात पर मतभेद हैं कि क्लाउड सीडिंग से वास्तव में कितनी मात्रा में वर्षा होती है। कई अध्ययनों में पाया गया है कि यह केवल 10% से 20% तक वर्षा बढ़ा पाती है, जबकि कुछ परिस्थितियों में कोई असर नहीं पड़ता।
पर्यावरणीय दृष्टिकोण से, विशेषज्ञों का कहना है कि सिल्वर आयोडाइड जैसे रासायनिक तत्वों की मात्रा बहुत कम होती है और वे आम तौर पर पर्यावरण या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होते। फिर भी, बड़े पैमाने पर प्रयोग के दौरान इसकी सुरक्षा की निगरानी आवश्यक है। यह भी सुनिश्चित करना होता है कि रासायनिक तत्व मिट्टी या जल स्रोतों में जमा न हों।
क्लाउड सीडिंग के लाभ:
-
सूखे की स्थिति में फसलों को बचाने में मदद।
-
प्रदूषण कम करने और वायु शुद्ध करने में योगदान।
-
भूजल स्तर बढ़ाने में सहायता।
-
मौसम नियंत्रित करने में आंशिक उपयोग।
-
जल संरक्षण रणनीति के तहत उपयोगी विकल्प।
क्लाउड सीडिंग की सीमाएँ:
-
बादलों की अनुपस्थिति में यह तकनीक काम नहीं करती।
-
अत्यधिक लागत और उच्च तकनीकी संसाधनों की जरूरत।
-
वर्षा की मात्रा का सटीक अनुमान लगाना कठिन।
-
पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर अभी भी अनुसंधान जारी है।
कुल मिलाकर, क्लाउड सीडिंग कोई जादुई समाधान नहीं है, बल्कि यह एक सहायक तकनीक है जो प्राकृतिक वर्षा को बढ़ावा देती है। भविष्य में जब मौसम विज्ञान और जलवायु तकनीक और उन्नत होगी, तब इस प्रक्रिया की सफलता दर भी बढ़ेगी। भारत जैसे देश, जहाँ हर साल प्रदूषण और सूखे की दोहरी चुनौती होती है, वहाँ यह तकनीक स्थायी विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।