पुतिन की दिल्ली यात्रा 2025 और भारत रूस संबंधों का नया मोड़
मोहित गौतम (दिल्ली) : रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 2025 में दिल्ली यात्रा भारत और रूस के संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखी जा रही है। लंबे समय से चली आ रही भारत रूस रणनीतिक साझेदारी को नए स्तर तक ले जाने के उद्देश्य से यह दौरा काफी अहम माना जा रहा है। वैश्विक राजनीति में तेजी से हो रहे बदलाव, रूस और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ते तनाव, ऊर्जा संकट और नए अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के दौर में इस यात्रा का अलग ही महत्व है। भारत अपनी स्वतंत्र कूटनीति और संतुलनकारी भूमिका को बनाए रखते हुए अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक स्थिर और विश्वसनीय साझेदार के रूप में उभरा है। ऐसे माहौल में पुतिन का भारत आना यह संकेत देता है कि दोनों देशों के रिश्ते अभी भी मजबूत और भरोसे पर आधारित हैं।
इस बार की बैठक में रक्षा क्षेत्र सबसे प्रमुख विषय है। दशकों से भारत रूस का प्रमुख रक्षा सहयोगी रहा है और भारत की कई महत्वपूर्ण सैन्य प्रणालियाँ रूस से जुड़ी हैं। मौजूदा समय में भारत वायु सुरक्षा, मिसाइल रक्षा तंत्र, जासूसी तकनीक और आधुनिक सैन्य उपकरणों के स्थानीय उत्पादन पर जोर दे रहा है। इस यात्रा में दोनों देशों के बीच ऐसी परियोजनाओं पर विस्तृत चर्चा होने की संभावना है जो भारत के लिए दीर्घकालिक सुरक्षा ढांचा मजबूत कर सकती हैं। यदि दोनों देश संयुक्त उत्पादन या को डेवलपमेंट पर सहमत होते हैं तो भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता का लक्ष्य और गति पकड़ सकता है।

ऊर्जा सहयोग इस दौरे का दूसरा बड़ा स्तंभ है। रूस विश्व के सबसे बड़े ऊर्जा उत्पादकों में से एक है और भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। भारत के लिए तेल, गैस और कोयले की स्थिर आपूर्ति का होना अत्यंत आवश्यक है। तेजी से बढ़ती ऊर्जा मांग को देखते हुए भारत और रूस के बीच दीर्घकालिक आपूर्ति समझौते उपयोगी साबित हो सकते हैं। इसके अलावा भारत स्वच्छ ऊर्जा, हाइड्रोजन ईंधन, न्यूक्लियर एनर्जी और ऊर्जा तकनीक में भी निवेश बढ़ाना चाहता है। रूस इन सभी क्षेत्रों में भारत के लिए एक संभावित सहयोगी बन सकता है।
इस यात्रा में व्यापार और निवेश भी मुख्य एजेंडा में शामिल हैं। भारत और रूस के बीच व्यापार पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है, लेकिन अभी भी यह अपनी संभावनाओं की तुलना में काफी कम है। दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने के लिए नए मार्ग, नई नीतियाँ और नए आर्थिक समाधान तलाशे जा सकते हैं। कृषि उत्पादों, फार्मा, टेक्नोलॉजी, खनिज, शिक्षा और डिजिटल सेवाओं जैसे क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाएँ काफी अधिक हैं। यदि दोनों देश व्यापार की बाधाओं को कम करने और भुगतान व्यवस्था को सरल बनाने पर सहमत होते हैं तो द्विपक्षीय कारोबार काफी तेज़ी से आगे बढ़ सकता है।
भू राजनीतिक स्थिति के संदर्भ में यह यात्रा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। रूस पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों और वैश्विक राजनीतिक दबाव का सामना कर रहा है, जबकि भारत वैश्विक मंच पर अपनी भूमिका मजबूत करने में लगा है। दोनों देशों का सहयोग उन क्षेत्रों में मजबूती ला सकता है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव डालते हैं, जैसे बहुपक्षीय मंच, क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद के खिलाफ सहयोग और वैश्विक आर्थिक संतुलन। भारत की नीति सदैव से ही संतुलन, संवाद और स्वतंत्र कूटनीति पर आधारित रही है और इस यात्रा में वही सिद्धांत एक बार फिर स्पष्ट दिखाई देते हैं।
भारत रूस सहयोग केवल बड़ी नीतियों या सरकारों के स्तर तक सीमित नहीं है। इसका प्रत्यक्ष असर भारत के उद्योग, नौकरियों, तकनीक और ऊर्जा व्यवस्था पर पड़ता है। यदि दोनों देश रक्षा, टेक्नोलॉजी और ऊर्जा पर नए समझौते करते हैं तो भारत में नई नौकरियों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों, स्टार्टअप सहयोग और औद्योगिक विकास के अवसर बन सकते हैं। भारत की कंपनियाँ रूस के बाजार में प्रवेश बढ़ा सकती हैं और रूस भारतीय तकनीक और मानव संसाधन का उपयोग कर सकता है।
पुतिन की यह यात्रा यह भी दिखाती है कि भारत किसी भी बड़े वैश्विक विवाद या दबाव के बावजूद अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को नहीं छोड़ रहा है। भारत सभी देशों के साथ संतुलित और परस्पर लाभकारी संबंध बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। यह दृष्टिकोण न केवल भारत की कूटनीतिक विश्वसनीयता को बढ़ाता है बल्कि देश को वैश्विक राजनीति में एक स्थिर और भरोसेमंद शक्ति के रूप में स्थापित करता है।
अंत में यह कहा जा सकता है कि पुतिन की दिल्ली यात्रा 2025 भारत रूस संबंधों के लिए एक निर्णायक क्षण साबित हो सकती है। यदि दोनों देश अपने आर्थिक, रणनीतिक और तकनीकी सहयोग को नई दिशा देते हैं तो आने वाले वर्षों में यह साझेदारी और मजबूत होकर उभरेगी। यह केवल दो राष्ट्रों के बीच मित्रता का प्रतीक नहीं बल्कि एक ऐसे गठबंधन की ओर संकेत है जो आने वाले दशकों में वैश्विक संतुलन पर भी प्रभाव डाल सकता है।