युवा और राजनीति: नई पीढ़ी कैसे बदल रही है देश की दिशा
मोहित गौतम (दिल्ली) : भारत एक युवा देश है, जहां की आबादी का बड़ा हिस्सा 18 से 35 वर्ष की आयु के बीच है। यही युवा शक्ति आज देश की राजनीति में नई ऊर्जा, नई सोच और नए मूल्यों का संचार कर रही है। पहले राजनीति को केवल कुछ परिवारों या बुजुर्ग नेताओं की दुनिया माना जाता था, लेकिन अब नई पीढ़ी सक्रिय रूप से इस क्षेत्र में अपनी जगह बना रही है।
सोशल मीडिया और डिजिटल युग ने युवाओं को पहले से कहीं अधिक जागरूक और प्रभावशाली बना दिया है। अब राजनीतिक चर्चा सिर्फ टीवी चैनलों या सभाओं तक सीमित नहीं रही, बल्कि हर मोबाइल स्क्रीन पर जारी है। युवा अपने विचार खुलकर रखते हैं, नेताओं से जवाब मांगते हैं और बदलाव की मांग करते हैं। यही राजनीतिक सक्रियता भारत के लोकतंत्र को और मजबूत बना रही है।
पिछले कुछ वर्षों में विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और डिजिटल प्लेटफार्मों पर राजनीतिक बहसों में युवाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ी है। अब यह पीढ़ी सिर्फ वोट डालने तक सीमित नहीं रहना चाहती, बल्कि नीति निर्माण में भी योगदान देना चाहती है। युवाओं का मानना है कि राजनीति अब केवल सत्ता पाने का साधन नहीं बल्कि समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण का माध्यम बननी चाहिए।
कई युवा नेता हाल के वर्षों में उभरे हैं, जिन्होंने पारंपरिक राजनीति से अलग एक नई शैली पेश की है। ये नेता जनता से सीधे संवाद करते हैं, समस्याओं को समझते हैं और तकनीक का उपयोग करके समाधान खोजते हैं। युवाओं का यह व्यावहारिक और परिणाम-आधारित दृष्टिकोण भारतीय राजनीति में नई उम्मीद जगाता है।
राजनीति में युवाओं की बढ़ती भागीदारी का एक और बड़ा कारण शिक्षा और सूचना की उपलब्धता है। आज का युवा पहले की तुलना में ज्यादा पढ़ा-लिखा, तकनीकी रूप से सक्षम और विचारशील है। उसे राजनीति के आर्थिक, सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय पहलुओं की समझ है। वह जानता है कि नीतियों का असर केवल चुनाव तक सीमित नहीं बल्कि आने वाले दशकों तक रहता है।
भारत में पिछले कुछ वर्षों में युवा मतदाताओं की संख्या लगातार बढ़ी है। चुनाव आयोग के अनुसार, हर आम चुनाव में पहली बार वोट देने वाले युवाओं की बड़ी भूमिका होती है। यही वर्ग राजनीतिक दलों के लिए निर्णायक साबित होता है। इसीलिए अब सभी प्रमुख पार्टियां युवाओं को आकर्षित करने के लिए नए एजेंडे और नीतियां ला रही हैं।
युवाओं ने अब राजनीति की भाषा भी बदल दी है। जहां पहले भाषणों में जाति, धर्म और क्षेत्रीय मुद्दों का बोलबाला था, वहीं अब विकास, रोजगार, शिक्षा और तकनीक जैसे मुद्दे प्राथमिकता में हैं। यह बदलाव साफ दर्शाता है कि भारत की राजनीति अब धीरे-धीरे मुद्दा-आधारित और आधुनिक सोच की ओर बढ़ रही है।
सोशल मीडिया पर युवाओं की सक्रियता ने लोकतंत्र को और पारदर्शी बना दिया है। अब नेता और सरकार जनता से छिप नहीं सकते। एक ट्वीट, एक वीडियो या एक पोस्ट लाखों लोगों तक पहुंच जाता है और तुरंत प्रतिक्रिया पैदा करता है। इसने नेताओं को अधिक जिम्मेदार बनने के लिए मजबूर किया है।
हालांकि राजनीति में युवाओं की बढ़ती भूमिका के साथ कुछ चुनौतियां भी हैं। कई बार युवाओं के आदर्श और वास्तविक राजनीति के बीच अंतर दिखाई देता है। कई युवा सोशल मीडिया पर तो सक्रिय रहते हैं, लेकिन जमीन पर राजनीतिक कार्यों में कम भागीदारी दिखाते हैं। इसलिए जरूरी है कि यह ऊर्जा केवल डिजिटल बहसों तक न रहे बल्कि वास्तविक बदलाव में बदले।
राजनीतिक दलों को भी युवाओं को वास्तविक नेतृत्व के अवसर देने होंगे। केवल प्रचार में युवाओं की तस्वीरें लगाने या सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने से परिवर्तन नहीं होगा। उन्हें नीति निर्धारण समितियों, पार्टी संगठन और चुनावी रणनीतियों में भी बराबर का मौका देना चाहिए।
नई पीढ़ी का राजनीति में प्रवेश न केवल भारत के लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है बल्कि यह उस परिवर्तन का प्रतीक भी है जिसकी देश को जरूरत है। आज का युवा जात-पात, धर्म या क्षेत्र से ऊपर उठकर विकास और समानता की बात करता है। यही सोच भारत को एक सशक्त और आधुनिक राष्ट्र की ओर ले जा सकती है।
युवाओं की राजनीति में भागीदारी सिर्फ मतदान तक सीमित न रहे बल्कि नीति निर्माण, सामाजिक सुधार और जनसेवा तक फैले — तभी असली लोकतंत्र साकार होगा। भारत का भविष्य इन्हीं हाथों में है जो सपने भी देखते हैं और उन्हें साकार करने की क्षमता भी रखते हैं।