भारत में महिलाओं की सुरक्षा और कानून व्यवस्था: चुनौतियाँ और समाधान
मोहित गौतम (दिल्ली) : भारत में महिलाओं की सुरक्षा एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दा है। समय के साथ सामाजिक जागरूकता बढ़ी है, लेकिन महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है। दुष्कर्म, छेड़छाड़, घरेलू हिंसा, उत्पीड़न और ऑनलाइन शोषण जैसी घटनाएँ रोज़ाना रिपोर्ट की जा रही हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, हर दिन सैकड़ों महिलाएँ अपराध का शिकार बनती हैं। ये आंकड़े दिखाते हैं कि महिलाओं की सुरक्षा केवल पुलिस या कानून की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी बन गई है।
सरकार ने इस दिशा में कई पहल की हैं। भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए विशेष प्रावधान भारतीय दंड संहिता (IPC) में शामिल किए गए हैं। 2013 में दिल्ली गैंगरेप कांड के बाद, कानून में कड़ा बदलाव किया गया और दंड की सीमा बढ़ाई गई। इसके अलावा, महिला हेल्पलाइन, 24×7 चौकसी और ऑनलाइन शिकायत प्रणाली जैसी सुविधाएँ भी उपलब्ध कराई गई हैं। “One Stop Centre” और “Mahila Police Volunteer” जैसी पहल महिलाओं को सुरक्षा, कानूनी और मानसिक सहायता प्रदान करती हैं।
हालांकि, केवल कानून होने से समस्या पूरी तरह हल नहीं होती। अपराधों की रोकथाम में शिक्षा और सामाजिक जागरूकता का योगदान अहम है। परिवार और स्कूलों में नैतिक शिक्षा, लैंगिक समानता और डिजिटल सुरक्षा पर ध्यान देना जरूरी है। साथ ही, महिलाओं को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग देना और रोजगार सशक्तिकरण के अवसर बढ़ाना भी उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करता है।
साइबर क्राइम और ऑनलाइन उत्पीड़न भी महिलाओं के खिलाफ अपराध का नया रूप है। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म, ऑनलाइन शॉपिंग ऐप और डेटिंग ऐप्स पर छेड़छाड़ और ब्लैकमेल जैसी घटनाओं में वृद्धि हुई है। सरकार ने इसके लिए साइबर अपराध कानून (IT Act) और “Cyber Crime Against Women” हेल्पलाइन स्थापित की है, लेकिन तकनीकी समझ और जागरूकता की कमी के कारण कई पीड़ित न्याय पाने से वंचित रहती हैं।
पुलिसिंग प्रणाली में सुधार और तेज़ी लाने के प्रयास जारी हैं। कई राज्यों ने महिला पुलिस थानों, हेल्पलाइन नंबर और SOS ऐप्स की सुविधा दी है। इसके अलावा, पुलिस प्रशिक्षण में लैंगिक संवेदनशीलता और साइबर अपराध से निपटने की विशेष तैयारी शामिल की जा रही है। न्यायपालिका ने भी विशेष fast-track कोर्ट स्थापित किए हैं, ताकि मामलों का निपटान जल्दी हो और न्याय शीघ्र मिल सके।
मीडिया और समाजिक अभियान भी इस दिशा में योगदान दे रहे हैं। जागरूकता अभियान, सोशल मीडिया कैंपेन और महिलाओं के खिलाफ अपराधों की रिपोर्टिंग समाज में चेतना बढ़ा रही है। लेकिन जिम्मेदार रिपोर्टिंग जरूरी है, ताकि महिलाओं की सुरक्षा की बात करते समय सनसनी फैलाने की प्रवृत्ति न बढ़े।
भारत में महिलाओं की सुरक्षा केवल कानून और सरकारी नीतियों पर निर्भर नहीं है। समाज को भी सक्रिय भूमिका निभानी होगी। परिवार, पड़ोसी, पड़ोस और नागरिक समूह महिलाओं की सुरक्षा में सहयोग कर सकते हैं। जब तक सामाजिक मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा और अपराध के खिलाफ सामूहिक जागरूकता नहीं बढ़ेगी, तब तक समस्या पूरी तरह खत्म नहीं होगी।
भविष्य के लिए तकनीकी समाधान भी मददगार साबित हो सकते हैं। GPS-ट्रैकिंग, SOS ऐप्स, AI-सेंसर्स, और स्मार्ट CCTV कैमरे महिलाओं की सुरक्षा को मजबूत कर सकते हैं। यदि सरकार, समाज और तकनीकी प्लेटफ़ॉर्म मिलकर प्रयास करें, तो भारत में महिलाओं की सुरक्षा का स्तर काफी बढ़ाया जा सकता है।