भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी: विकास दर से लेकर वैश्विक निवेश तक, जानिए भारत की आर्थिक मजबूती के कारण
मोहित गौतम (दिल्ली) : भारत की अर्थव्यवस्था आज दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन चुकी है। पिछले कुछ वर्षों में कोविड-19 महामारी, वैश्विक मंदी और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी कई चुनौतियों के बावजूद भारत ने अपनी विकास दर को न सिर्फ संभाला बल्कि कई विकसित देशों को पीछे छोड़ दिया। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक दोनों ने ही भारत की GDP ग्रोथ रेट के अनुमान को ऊँचा रखा है। वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की विकास दर 7% से अधिक रहने की संभावना जताई जा रही है, जो चीन, अमेरिका और यूरोप जैसे देशों से कहीं आगे है। यह तेजी केवल सांख्यिकीय आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि यह देश की आर्थिक नीतियों, उद्यमिता और तकनीकी प्रगति का परिणाम है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने “मेक इन इंडिया”, “स्टार्टअप इंडिया” और “डिजिटल इंडिया” जैसे अभियानों के माध्यम से न केवल विदेशी निवेश आकर्षित किया है, बल्कि घरेलू उद्योगों को भी सशक्त बनाया है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में रिकॉर्ड संख्या में यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स उभरे हैं, जिससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है। इसके साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में बड़े पैमाने पर निवेश हुआ है — चाहे वह एक्सप्रेसवे हों, एयरपोर्ट्स हों या स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स।
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की नीतियों ने भी अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान की है। महंगाई पर नियंत्रण रखने के लिए मौद्रिक नीतियों में सुधार किया गया, जबकि बैंकिंग सेक्टर में पारदर्शिता बढ़ाने और एनपीए (Non Performing Assets) को घटाने के प्रयास सफल रहे हैं। अब बैंक अधिक मज़बूत स्थिति में हैं और लोन देने की क्षमता भी बढ़ी है। इससे छोटे और मध्यम उद्योगों (MSME) को नई जान मिली है, जो भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं।
सेवा क्षेत्र (Services Sector) और सूचना प्रौद्योगिकी (IT Sector) में भी भारत ने जबरदस्त प्रगति की है। आईटी कंपनियों और बीपीओ सेवाओं ने भारत को वैश्विक आउटसोर्सिंग का केंद्र बना दिया है। इसके अलावा, भारत अब इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग, मोबाइल असेंबली, और सेमीकंडक्टर उत्पादन में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है। Apple, Samsung और Foxconn जैसी कंपनियों ने भारत में उत्पादन बढ़ाने की दिशा में निवेश बढ़ाया है, जिससे रोजगार और निर्यात दोनों में सुधार देखने को मिला है।
कृषि क्षेत्र में भी कई सकारात्मक बदलाव हुए हैं। सरकार की नीतियाँ जैसे प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, फसल बीमा योजना, और आधुनिक कृषि तकनीक के प्रसार ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाया है। ग्रामीण क्षेत्रों में क्रय शक्ति बढ़ने से उपभोग में वृद्धि हुई है, जिससे बाज़ार में मांग का स्तर बढ़ा है। यही मांग देश की आर्थिक वृद्धि के सबसे बड़े इंजन के रूप में काम कर रही है।
भारत के व्यापार संबंध भी तेजी से विस्तार कर रहे हैं। यूरोप, अमेरिका और एशिया के साथ-साथ अफ्रीका और मध्य पूर्व के देशों के साथ भारत ने नए व्यापार समझौते किए हैं। भारत अब न केवल वस्तुओं का निर्यातक है बल्कि सेवाओं और डिजिटल तकनीक का भी प्रमुख प्रदाता बन गया है। भारत की साख अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतनी बढ़ गई है कि वैश्विक निवेशक इसे “विश्व की नई ग्रोथ इंजन” कहने लगे हैं।
हालांकि चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं। बेरोजगारी, महंगाई, और आय असमानता जैसे मुद्दे सरकार और नीति-निर्माताओं के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं। लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद भारत की नीतियाँ दीर्घकालिक विकास के लिए सही दिशा में हैं। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यदि भारत अपने बुनियादी ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बढ़ाता रहा, तो आने वाले 10 वर्षों में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
भारत के युवाओं की ऊर्जा, बढ़ती डिजिटल साक्षरता, और उद्यमिता की भावना इस आर्थिक गति की असली ताकत हैं। 140 करोड़ से अधिक की जनसंख्या में से आधे से ज्यादा युवा हैं, जो देश को एक विशाल कार्यबल और नवाचार का केंद्र बना रहे हैं। यही कारण है कि भारत को अब “उभरती हुई अर्थव्यवस्था” नहीं, बल्कि “स्थायी विकासशील शक्ति” कहा जाने लगा है।
अंततः, भारत की आर्थिक यात्रा यह दर्शाती है कि कैसे एक विकासशील देश दृढ़ इच्छाशक्ति, सही नीतियों और तकनीकी नवाचार के सहारे वैश्विक मंच पर अपनी पहचान मजबूत कर सकता है। आने वाले वर्षों में यदि सुधारों की यह गति जारी रही, तो भारत न केवल एशिया का आर्थिक केंद्र बनेगा बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक नई विकास कहानी लिखेगा।