भारत में बढ़ता विदेशी निवेश: वैश्विक कंपनियों की पहली पसंद क्यों बन रहा है भारत
मोहित गौतम (दिल्ली) : भारत आज वैश्विक निवेश के लिए एक प्रमुख गंतव्य बन चुका है। दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियाँ भारत में तेजी से निवेश कर रही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है भारत की स्थिर आर्थिक नीतियाँ, विशाल उपभोक्ता बाजार, और तेज़ी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था। कोविड-19 महामारी के बाद जब दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएँ धीमी पड़ गईं, तब भी भारत ने अपने विकास की रफ्तार को कायम रखा। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, भारत आने वाले वर्षों में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बनी रहेगी। इस सकारात्मक माहौल का असर यह हुआ है कि विदेशी निवेशक भारत को सुरक्षित और लाभकारी बाजार के रूप में देखने लगे हैं।
सरकारी नीतियों ने भी विदेशी निवेश आकर्षित करने में अहम भूमिका निभाई है। “मेक इन इंडिया”, “ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस”, “डिजिटल इंडिया” और “स्टार्टअप इंडिया” जैसे अभियानों ने निवेशकों के लिए माहौल को सरल और पारदर्शी बनाया है। भारत ने विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) से जुड़े नियमों को भी उदार बनाया है। अब कई सेक्टरों में 100% FDI की अनुमति है, जैसे—ई-कॉमर्स, डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर, और रिन्यूएबल एनर्जी। सरकार की इन पहलियों ने विदेशी कंपनियों को भारत में उत्पादन केंद्र स्थापित करने के लिए प्रेरित किया है।
Apple, Samsung, Foxconn, Tesla, Amazon, Google और Microsoft जैसी वैश्विक कंपनियाँ भारत में बड़े पैमाने पर निवेश कर रही हैं। Apple ने भारत में iPhone निर्माण बढ़ाया है, जबकि Tesla देश में इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन की दिशा में आगे बढ़ रही है। इसी तरह Amazon और Google ने भी भारत के डिजिटल इकोसिस्टम में अरबों डॉलर का निवेश किया है। इन निवेशों ने न केवल रोजगार के अवसर बढ़ाए हैं बल्कि भारत की तकनीकी क्षमता को भी मजबूत किया है।
भारत की जनसांख्यिकी भी विदेशी निवेश के लिए एक बड़ा आकर्षण है। 140 करोड़ से अधिक की आबादी में से लगभग 65% लोग युवा हैं, जिनकी औसत आयु 29 वर्ष के आसपास है। यह युवा और तकनीक-प्रेमी जनसंख्या विदेशी कंपनियों के लिए एक विशाल उपभोक्ता बाजार तैयार करती है। इसके अलावा, भारत में श्रम लागत तुलनात्मक रूप से कम है, जिससे उत्पादन की लागत घटती है और प्रतिस्पर्धा बढ़ती है। यही कारण है कि कई विदेशी निर्माता चीन से उत्पादन इकाइयाँ हटाकर भारत की ओर रुख कर रहे हैं — जिसे “चाइना प्लस वन स्ट्रैटेजी” कहा जाता है।
भारतीय राज्यों ने भी निवेश आकर्षित करने के लिए अपनी नीतियाँ सुधारी हैं। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्य विशेष निवेश क्षेत्रों (SEZs) और औद्योगिक गलियारों (Industrial Corridors) का विकास कर रहे हैं। ये क्षेत्र निवेशकों को भूमि, बिजली, लॉजिस्टिक्स और टैक्स लाभ जैसी सुविधाएँ प्रदान करते हैं। हाल ही में, उत्तर प्रदेश सरकार ने “ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट” का आयोजन किया, जिसमें लाखों करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव मिले।
विदेशी निवेश के क्षेत्र में एक और बड़ा बदलाव “ग्रीन एनर्जी” सेक्टर में देखने को मिला है। भारत ने 2070 तक “नेट ज़ीरो एमिशन” का लक्ष्य तय किया है, जिसके तहत सौर और पवन ऊर्जा में निवेश बढ़ रहा है। यूरोप और खाड़ी देशों की कई कंपनियाँ भारत के ग्रीन एनर्जी मिशन में भागीदारी कर रही हैं। अदानी ग्रीन एनर्जी, टाटा पावर और रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी भारतीय कंपनियाँ भी विदेशी पूंजी के सहयोग से बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं।
भारत के वित्तीय बाजारों में भी विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ रहा है। FII (Foreign Institutional Investors) और FPI (Foreign Portfolio Investors) ने भारतीय शेयर बाजार में निवेश बढ़ाया है, जिससे Sensex और Nifty ने नए रिकॉर्ड बनाए हैं। यह विदेशी विश्वास का प्रतीक है कि भारत की आर्थिक बुनियाद मजबूत है और दीर्घकालिक विकास की संभावना प्रबल है।
हालांकि, भारत के सामने कुछ चुनौतियाँ भी हैं। ब्यूरोक्रेसी, भूमि अधिग्रहण की जटिलताएँ, और कुछ राज्यों में नीति अस्थिरता विदेशी निवेशकों के लिए चिंता का कारण हैं। इसके बावजूद, पिछले एक दशक में भारत ने इन समस्याओं को काफी हद तक कम किया है। “सिंगल विंडो क्लियरेंस सिस्टम” और “ऑनलाइन अप्रूवल पोर्टल” जैसी पहलियों से निवेश प्रक्रिया को डिजिटल और तेज़ बनाया गया है।
विश्व बैंक की “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। 2014 में भारत जहाँ 142वें स्थान पर था, वहीं अब टॉप 65 देशों में शामिल है। यह प्रगति इस बात का प्रमाण है कि भारत अब निवेशकों के लिए एक स्थिर और सुरक्षित अर्थव्यवस्था बन चुका है।
भविष्य की दृष्टि से देखें तो भारत का विदेशी निवेश परिदृश्य और भी उज्ज्वल दिखाई देता है। सेमीकंडक्टर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इलेक्ट्रिक वाहन और 5G इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों में आने वाले वर्षों में अरबों डॉलर का निवेश होने की संभावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार निवेश नीतियों को और सरल बनाती है और इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस बनाए रखती है, तो भारत अगले दशक में एशिया का सबसे बड़ा निवेश गंतव्य बन सकता है।
कुल मिलाकर, भारत में बढ़ता विदेशी निवेश यह दर्शाता है कि देश अब सिर्फ एक उभरता हुआ बाजार नहीं बल्कि एक भरोसेमंद वैश्विक निवेश केंद्र बन चुका है। पारदर्शिता, नवाचार और विकास के संतुलन ने भारत को 21वीं सदी की आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया है। आने वाले वर्षों में यह गति बनी रही, तो भारत निश्चित रूप से विश्व की आर्थिक धुरी बन जाएगा।