साइबर बुलिंग और ऑनलाइन ट्रोलिंग – कानून क्या कहता है और शिकायत कहाँ करें?
मोहित गौतम (दिल्ली) : डिजिटल युग में सोशल मीडिया, चैट ऐप्स और ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म ने लोगों को करीब तो लाया है, लेकिन इसी के साथ बढ़ी है साइबर बुलिंग और ऑनलाइन ट्रोलिंग की घटनाएँ। कई बार ये मज़ाक या राय के आदान-प्रदान से शुरू होकर मानसिक उत्पीड़न, धमकी और ब्लैकमेलिंग तक पहुँच जाती हैं।
क्या है साइबर बुलिंग और ट्रोलिंग?
साइबर बुलिंग का मतलब है — इंटरनेट या डिजिटल माध्यम से किसी व्यक्ति को बार-बार परेशान करना, अपमानित करना, अफवाह फैलाना या धमकी देना। वहीं, ट्रोलिंग का मतलब है किसी व्यक्ति या समूह को जानबूझकर भड़काने या नीचा दिखाने के लिए सोशल मीडिया पर भद्दे कमेंट्स करना।
कानून क्या कहता है?
भारत में साइबर बुलिंग और ऑनलाइन उत्पीड़न से निपटने के लिए कई क़ानूनी प्रावधान मौजूद हैं:
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सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act), 2000 की धारा 66A, 67, 67A और 67B अश्लील या आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने और प्रसारित करने वालों पर कार्रवाई का प्रावधान करती हैं।
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भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354D (स्टॉकिंग), धारा 499-500 (मानहानि), धारा 503-507 (धमकी देना या डराना) के तहत भी केस दर्ज हो सकता है।
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अगर कोई व्यक्ति किसी महिला को अश्लील संदेश भेजता है, तो धारा 509 IPC के तहत सज़ा दी जा सकती है।
कहाँ करें शिकायत?
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राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल: www.cybercrime.gov.in पर जाकर ऑनलाइन शिकायत दर्ज की जा सकती है।
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स्थानीय पुलिस थाने में FIR: अगर अपराध गंभीर है (जैसे धमकी या ब्लैकमेलिंग), तो सीधे थाने में FIR दर्ज कराई जा सकती है।
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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रिपोर्ट करें: हर प्लेटफॉर्म (Facebook, Instagram, X, YouTube आदि) पर “Report” या “Block” का विकल्प होता है।
क्या सबूत रखना ज़रूरी है?
हाँ, हर संदेश, स्क्रीनशॉट, ईमेल या चैट हिस्ट्री को सुरक्षित रखें। ये सबूत जांच और केस में बहुत अहम भूमिका निभाते हैं।
निष्कर्ष:
साइबर बुलिंग कोई मामूली मज़ाक नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक अपराध है। कानून हर नागरिक को ऑनलाइन सुरक्षा का अधिकार देता है। इसलिए यदि आप या आपका कोई परिचित ऐसे उत्पीड़न का शिकार हो, तो चुप न रहें — शिकायत करें, सबूत रखें और अपने अधिकारों का प्रयोग करें