मकान मालिक और किरायेदार के अधिकार: किराया कानून में क्या है ज़रूरी जानकारी?
मोहित गौतम (दिल्ली) : भारत में शहरीकरण के साथ किराए पर मकान लेने और देने का चलन लगातार बढ़ रहा है। लेकिन अक्सर मकान मालिक और किरायेदार के बीच अधिकारों और क़ानून की जानकारी न होने के कारण विवाद खड़े हो जाते हैं। ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि किराया कानून (Rent Control Act) के तहत दोनों पक्षों के लिए क्या नियम और अधिकार तय किए गए हैं।
सबसे पहले किरायेदार के अधिकार की बात करें। कानून के अनुसार, मकान मालिक बिना उचित कारण और तय प्रक्रिया के किरायेदार को बेदखल नहीं कर सकता। किरायेदार को यह अधिकार है कि मकान की मरम्मत और सुविधाओं को लेकर मकान मालिक से अपेक्षा रख सके। यदि मकान मालिक मनमाना किराया बढ़ाता है, तो किरायेदार Rent Control Authority के पास शिकायत दर्ज करा सकता है। साथ ही, किरायेदार को तय नोटिस पीरियड मिलने तक मकान में रहने का अधिकार है।
दूसरी ओर, मकान मालिक के भी कई अधिकार हैं। यदि किरायेदार समय पर किराया नहीं देता, संपत्ति को नुकसान पहुँचाता है या अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन करता है, तो मकान मालिक उसे कानूनी प्रक्रिया के तहत बेदखल कर सकता है। मकान मालिक को यह अधिकार भी है कि वह लिखित समझौते (Rent Agreement) के अनुसार नियम तय करे, ताकि भविष्य में विवाद की स्थिति न बने।
महत्वपूर्ण यह है कि किरायेदार और मकान मालिक दोनों ही लिखित एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करें, जिसमें किराया राशि, जमा (security deposit), नोटिस पीरियड और अन्य शर्तें स्पष्ट लिखी हों। इससे पारदर्शिता बनी रहती है और विवाद की स्थिति आने पर कानूनी कार्रवाई आसान हो जाती है।
स्पष्ट है कि यदि दोनों पक्ष अपने अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ समझकर चलें तो मकान किराए पर लेने और देने का संबंध विश्वास और सहयोग से भरा रहेगा।