उत्तर प्रदेश पत्रकार हत्याकांड: तीन घंटे में दो आरोपी शूटरों की मुठभेड़ में मौत
मोहित गौतम (दिल्ली) : उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में स्थित महोली इलाके में कार्यरत पत्रकार राघवेंद्र बाजपेयी की हत्या को लेकर हाल ही में पुलिस ने बड़ी कार्रवाई की है। मार्च महीने में बदमाशों ने ओवरब्रिज पर उन पर गोलियां चलाकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया था। अधिकारी अब बताते हैं कि आरोपी पत्रकार की हत्या के तीन घंटे के भीतर ही दो मुख्य शूटरों की मुठभेड़ में मौत हो गई। यह कार्रवाई पिसावां मार्ग पर की गई।
पत्रकार की हत्या की गुत्थी
राघवेंद्र, एक स्थानीय हिंदी दैनिक से जुड़े पत्रकार और सूचना अधिकार (RTI) से जुड़े सक्रिय कार्यकर्ता थे। वे प्रति रिपोर्ट्स में चावल की खरीद, स्टाम्प ड्यूटी में अनियमितताएं और जमीन घोटाले जैसी नीतिगत गड़बड़ियों को उजागर करते थे। पुलिस के अनुसार, इससे प्रभावित कुछ लोग उनकी हत्या की साजिश रची। बाइक सवार दो हमलावरों ने उन्हें वारदात स्थल पर पहले टक्कर मारी, फिर तीन गोलियां मारीं, जिससे उनकी मौत हो गई।
घटना के ठीक बाद एसटीएफ की टीम गठित की गई और पुलिस ने कई संदिग्धों को हिरासत में लिया। जांच में पता चला कि एक मंदिर के पुजारी और उनके दो साथियों ने राघवेंद्र की हत्या की गठरी साजिश रची थी, जिन्हें बीते महीनों में गिरफ्तार किया गया है। ये सभी लोग उन रिपोर्ट्स का बदला लेने की मंशा से जुड़े थे।
मुठभेड़ में दो दोषियों की मौत
हत्या के तीन घंटे बाद ही पुलिस और विशेष कार्रवाई टीम ने पिसावां इलाके में उन दो शूटरों को पहचान लिया जो घटना में शामिल थे। दोनों बाइक से जा रहे थे जब पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की। दोनों आरोपियों ने पुलिस पर हमला कर दिया, जिसके जवाब में सुरक्षा बल ने जवाबी कार्रवाई की। मुठभेड़ में दोनों शूटर घायल हुए, जिन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। इन दो आरोपियों पर एक-एक लाख रुपये का इनाम घोषित था।
परिवार ने इस कार्रवाई से संतोष नहीं जताया, क्योंकि उनका कहना है कि मुठभेड़ से पहले उन्हें घटना की सूचना नहीं दी गई और उन्हें इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनाया गया।
पुलिस कार्रवाई और आगे की दिशा
पुलिस का कहना है कि इसके अलावा लगभग तीन दर्जन संदिग्धों को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई है। जिन असल दोषियों की गिरफ्तारी संभव हुई, वे अब न्याय की प्रक्रिया से गुजरेंगे। मामले की गंभीरता देखते हुए, अब उच्चाधिकारियों और मानवाधिकार आयोग में भी सुनवाई की संभावना है ताकि मुठभेड़ और जांच प्रक्रिया की पारदर्शिता बरकरार रहे।