न्यायालय में नकदी विवाद: लोकसभा स्पीकर ने न्यायाधीश वर्मा के खिलाफ जांच समिति बनाई
मोहित गौतम (दिल्ली) : सुप्रीम कोर्ट द्वारा कि गई जांच में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से बड़ी मात्रा में जल चुकी और आंशिक रूप से जली नकदी की पुष्टि हुई थी। इस रिपोर्ट के आधार पर, 146 सांसदों द्वारा महाभियोग प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था। लोकसभा स्पीकर ने इसे स्वीकार करते हुए एक तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया है।
इस समिति में शामिल हैं: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, तथा कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ अधिवक्ता। समिति को संविधान की धारा 124(4) के अंतर्गत साजिश और गंभीर कदाचार की जांच करने का अधिकार प्राप्त है। वे गवाहों से पूछताछ कर सकेंगे और अपनी रिपोर्ट लोकसभा में पेश करेंगे, जिसके आधार पर सदन बहस कर आचरण पर निर्णय ले सकेगा।
इन-हाउस जाँच और सुप्रीम कोर्ट की स्थिति
मार्च में हुई आग लगने की घटना के दौरान मिली नकदी की सदिशता, उसमें वर्मा का अप्रत्यक्ष या सक्रिय नियंत्रण — इन निष्कर्षों को सुप्रीम कोर्ट ने पुष्ट किया था। न्यायालय ने उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए सिफ़ारिश की। वर्मा ने इन निष्कर्षों को चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी।
संसद में कार्रवाई: आगे का रास्ता
लोकसभा में शुरू हुई महाभियोग प्रक्रिया ने कोर्ट-नियुक्त जांच के निष्कर्ष को औपचारिक रूप दिया है। अब मामला संसद के दोनों सदनों की प्रक्रिया से गुजरेगा: जांच समिति की रिपोर्ट लोकसभा में आएगी, फिर बहस और मतदान के माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया की दिशा तय होगी। विधायी प्रक्रिया में दो-तिहाई सांसदों की सहमति से निर्णय पारित होगा।
राजनीति और लोकतंत्र की बड़ी परीक्षा
इस पूरे घटनाक्रम ने न्यायपालिका, सत्ता संरक्षण और जनता के विश्वास के संबंध में एक संवेदनशील बहस को जन्म दिया है। विपक्ष द्वारा उठाए गए सवाल—क्या यह प्रक्रिया राजनीतिक संतुलनहोने से प्रभावित थी—लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौतियाँ हैं। अभी यह देखना बाकी है कि जांच समिति क्या निष्कर्ष प्रस्तुत करती है और संसद इस पर कैसा निर्णय लेती है।