संपादकीय: डिजिटल दौर में सबसे बड़ा इम्तिहान — इंसानियत की ज़िम्मेदारी
मोहित गौतम (दिल्ली) : हमारा समय तकनीक की चमत्कारी तरक़्क़ी का गवाह है। कभी जो बातें असंभव लगती थीं, आज कुछ ही सेकंड में हो रही हैं। सूचना का प्रवाह, विचारों का आदान‑प्रदान और दुनिया के किसी भी कोने से जुड़ने की ताक़त — यह सब इंटरनेट और सोशल मीडिया की देन है।
मगर सवाल यह है कि क्या तकनीक ने हमारे भीतर की संवेदनशीलता और ज़िम्मेदारी को भी उतना ही मज़बूत किया है? या हम सिर्फ़ तेज़ रफ़्तार सूचनाओं के वाहक बन कर रह गए हैं, जिनमें न सच्चाई की पड़ताल है, न असर की फ़िक्र?
तकनीक की ताक़त, पर ज़िम्मेदारी किसकी?
आज सोशल मीडिया पर एक अफ़वाह पलक झपकते ही हज़ारों बार शेयर हो जाती है। किसी की झूठी बदनामी से ज़िंदगी तबाह हो सकती है। भीड़ का गुस्सा सड़क पर उतर आता है, या ऑनलाइन गालियों में बदल जाता है।
हम अपने फोन की स्क्रीन पर अंगुलियाँ चलाते हुए भूल जाते हैं कि हर शेयर, हर कमेंट का असर असली ज़िंदगी पर भी पड़ता है।
यहाँ तकनीक दोषी नहीं है। दोषी है वह लापरवाही, जो यह मान लेती है कि “सब करते हैं, तो मैंने भी कर दिया।” असल में, तकनीक हमें विकल्प देती है; ज़िम्मेदारी हमारी होती है कि हम किसका चुनाव करते हैं।
क्या सचमुच रुक कर सोचते हैं?
सोचिए, आख़िरी बार कब किसी वीडियो या ख़बर को शेयर करने से पहले हमने यह जाँचा कि यह सही भी है या नहीं? या किसी के बारे में कुछ कहने से पहले यह सोचा कि उससे उसके मन और जीवन पर क्या असर पड़ेगा?
तेज़ रफ़्तार की इस दुनिया में सच को परखने की आदत और इंसानियत का तक़ाज़ा कहीं पीछे छूटता जा रहा है। हम बस “फॉरवर्ड” या “रीट्वीट” कर आगे बढ़ जाते हैं, जैसे हमारे पास इतना वक़्त ही नहीं कि एक पल ठहर कर सोच सकें।
समाधान सिर्फ़ कानून नहीं, सोच में बदलाव भी
बेशक़, फ़र्ज़ी ख़बरें, ट्रोलिंग और हेट स्पीच रोकने के लिए क़ानून ज़रूरी हैं। लेकिन क्या सिर्फ़ कानून से सब कुछ बदलेगा? असल बदलाव तब आएगा जब हर व्यक्ति खुद ठान ले कि वह किसी झूठ को फैलाने का हिस्सा नहीं बनेगा, किसी की इज़्ज़त से खेलने की वजह नहीं बनेगा।
जागरूकता और शिक्षा से यह आदत पैदा करनी होगी कि “पहले जाँचो, फिर भरोसा करो और तब शेयर करो।” यह समझ भी कि ऑनलाइन दुनिया भी असली दुनिया की तरह लोगों की भावनाओं और ज़िंदगी को प्रभावित करती है।
तकनीक से पहले इंसानियत
टेक्नोलॉजी एक साधन है — बहुत ताक़तवर, लेकिन आखिरकार इसे चलाते इंसान ही हैं। चाहे हम ख़बर लिख रहे हों, वीडियो बना रहे हों, या सिर्फ़ किसी पोस्ट को शेयर कर रहे हों — हर बार यह सोचें कि इससे समाज पर क्या असर होगा।
इस सोच से ही एक ज़िम्मेदार डिजिटल समाज बनेगा, जो सिर्फ़ तेज़ नहीं, बल्कि सच्चा और संवेदनशील भी होगा।
क्योंकि तकनीक की रफ़्तार से भी बड़ी चीज़ है इंसान की ज़िम्मेदारी और उसकी इंसानियत।