शादी नहीं, साथ रहना: लिव‑इन रिलेशनशिप को क्या कहता है भारतीय कानून?
मोहित गौतम (दिल्ली) : बदलते समाज में लिव‑इन रिलेशनशिप अब केवल मेट्रो सिटी तक सीमित नहीं रही। लेकिन ज़्यादातर लोग अब भी इस बारे में कन्फ्यूज रहते हैं कि क्या लिव‑इन रिलेशनशिप भारत में कानूनी रूप से मान्य है? और इसमें रहने वाले कपल्स के क्या अधिकार हैं? जानिए सरल भाषा में कानून का नजरिया।
⚖️ भारत में लिव‑इन रिलेशनशिप की कानूनी स्थिति
भारतीय क़ानून में सीधे तौर पर “लिव‑इन रिलेशनशिप” शब्द का ज़िक्र नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट और कई हाई कोर्ट के फैसलों ने इसे मान्यता दी है, अगर:
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दोनों वयस्क हैं और अपनी मर्जी से साथ रह रहे हैं।
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संबंध लंबे समय तक और स्थायी जैसे हों (यानी सिर्फ कुछ दिनों का नहीं)।
🛡 महिलाओं के अधिकार
Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005 (DV Act) के तहत:
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लिव‑इन में रह रही महिला भी घरेलू हिंसा की शिकार होने पर कोर्ट से सुरक्षा और मुआवज़ा मांग सकती है।
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कोर्ट ने साफ कहा: लंबे समय तक लिव‑इन में रहने वाली महिला को "wife" जैसा दर्जा मिल सकता है।
👶 बच्चों के अधिकार
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लिव‑इन रिलेशन से पैदा हुए बच्चों को कानूनी रूप से वैध माना जाता है।
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उन्हें माता‑पिता की संपत्ति में अधिकार भी मिल सकता है, अगर संबंध को कोर्ट “marriage like” मान ले।
🏠 संपत्ति पर अधिकार
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लिव‑इन पार्टनर का दूसरे पार्टनर की निजी संपत्ति पर हक़ नहीं होता, जब तक कानूनी शादी न हो या कोई साझी संपत्ति न हो।
📄 सबूत ज़रूरी है
अगर कोर्ट में साबित करना हो कि लिव‑इन रिलेशन स्थायी और “marriage like” था, तो:
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साथ रहने के सबूत (बिजली बिल, किराए की रसीद आदि)
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सोशल मीडिया या फोटो
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गवाहों के बयान
✅ निष्कर्ष
लिव‑इन रिलेशनशिप भारतीय समाज में धीरे‑धीरे स्वीकार की जा रही है, और कानून ने भी इसे कुछ हद तक सुरक्षा दी है। लेकिन पार्टनर्स को अपने अधिकार और कानूनी स्थिति को लेकर जागरूक रहना ज़रूरी है।