बच्चों पर बढ़ता ऑनलाइन कंटेंट का असर: पैरेंट्स और सिस्टम की भूमिका
मोहित गौतम (दिल्ली) : हमारे समय की सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि आज का बचपन डिजिटल स्क्रीन की रोशनी में पल रहा है। स्मार्टफ़ोन, टैबलेट और इंटरनेट ने ज्ञान की नई दुनिया खोली है, लेकिन साथ‑साथ कई अनदेखे खतरे भी सामने ला दिए हैं। सवाल यह है कि बच्चों पर इस बढ़ते ऑनलाइन कंटेंट का असली असर क्या है, और इसमें माता‑पिता के साथ‑साथ सिस्टम की क्या भूमिका होनी चाहिए?
ज्ञान का खज़ाना या भ्रम का जंगल?
इंटरनेट पर बच्चों के लिए पढ़ाई, रोचक कहानियाँ, भाषा सीखने के ऐप से लेकर वैज्ञानिक वीडियो तक सब कुछ मौजूद है। लेकिन उसी इंटरनेट पर हिंसा, अश्लील सामग्री, झूठी खबरें और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला कंटेंट भी आसानी से मिल जाता है। बच्चों की कोमल सोच के लिए यह कंटेंट ज़हर का काम कर सकता है, खासकर तब, जब उन्हें यह समझ ही नहीं होता कि क्या सही है और क्या ग़लत।
डिजिटल पैरेंटिंग की चुनौती
बच्चों के हाथ में मोबाइल देना आसान है, लेकिन उन्हें जागरूक बनाना मुश्किल है। पैरेंट्स अक्सर काम की व्यस्तता या जानकारी की कमी की वजह से यह ज़िम्मेदारी छोड़ देते हैं कि “बच्चा खुद समझ जाएगा।”
असल में, डिजिटल युग में पैरेंट्स की भूमिका सिर्फ़ डिवाइस देने की नहीं, बल्कि गाइड बनने की है। क्या बच्चे किस प्लेटफॉर्म पर जा रहे हैं? कितनी देर देख रहे हैं? कौन‑सी ऐप डाउनलोड कर रहे हैं? इन सवालों पर नज़र रखना ज़रूरी है, और उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है बच्चों से खुलकर बात करना, ताकि वे भी कुछ ग़लत या परेशान करने वाला दिखे, तो बिना डरे बता सकें।
सिस्टम की भूमिका और कानूनी ज़िम्मेदारी
सरकार और प्लेटफॉर्म्स दोनों की ज़िम्मेदारी है कि बच्चों को सुरक्षित ऑनलाइन माहौल दिया जाए। इसके लिए IT कानून में कुछ प्रावधान हैं, लेकिन उनकी सख़्ती और पालन अभी भी कमज़ोर है। स्कूलों में भी डिजिटल साक्षरता (digital literacy) पढ़ाई जानी चाहिए, ताकि बच्चे खुद भी सच‑झूठ, सही‑ग़लत में फर्क करना सीखें।
सिर्फ़ रोक नहीं, सही दिशा भी ज़रूरी
महज़ पाबंदियाँ बच्चों को और जिज्ञासु बना सकती हैं। बेहतर है कि उन्हें ऑनलाइन दुनिया की अच्छाई और बुराई दोनों के बारे में सही भाषा में बताया जाए।
तकनीक से बच्चों को पूरी तरह दूर करना नामुमकिन है — सही रास्ता यही है कि उन्हें सही और ज़िम्मेदार उपभोग की आदत सिखाई जाए।
निष्कर्ष
ऑनलाइन कंटेंट का असर बच्चों के भविष्य को गढ़ भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका माता‑पिता, शिक्षकों और सिस्टम की है — बच्चों को सिर्फ़ तकनीक से नहीं, सच्ची समझ और आत्मविश्वास से भी लैस करना।